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दुर्मिल सवैया




दुर्मिल सवैया


रखना मन को अपने वश में अति संयम से चलते रहना।

कहते हरिकृष्ण सुजान बनो यम योग स्वभाव रचा करना।

समता शुभदायक मंत्र जपो बन सिद्ध महान सदा चलना।

चल झूम बनो ललना सबका जग में मनमीत बने बहना।


सबका दिल जीतन को चल दो सबसे अति प्यार किया करना।

मत तोड़ कभी दिल मानव का सुगना बन जा उड़ते रहना।

गगना उस पार चला करना सबके हित का सपना बुनना।

उठ जाय तरंग सदा हिय में सबमें बसना सबका बनना।


मन-बुद्धि-विवेक सुधार करो सबके मन में रचना-बसना ।

शुभ योग करो सहयोग करो धर धीर विचार सदा कसना।

मनरोग हरो दुख-क्लेश हरो भव रोग भयानक को डसना।

हरिधाम रहो सुखधाम बनो प्रिय ग्राम रचो मधु हो रसना।


अपने धुन में नित मस्त रहो खुद के दिल को पढ़ना-लिखना।

सुनना खुद से गुनना खुद ही बन वस्तु प्रथा रचते दिखना।

खुद काम करो सब छोड़ भरोस सदा निज छाँव सुधा रचना।

कर धारण धर्म ध्वजा कर में बन पार्थ सदा विजयी बनना।


मन से लड़ना मन में लड़ना मन कायर को ललकार सदा।

दुख वृत्ति कटे दुख भोग मिटे दुख सिंधु बुझे शत बार सदा।

मन ग्रन्थि जले शिव पंथ खिले हुलसे उर प्रेम विचार सदा।

बलिराम करें अपने पुर में शिवराम सुधाम गुहार सदा।






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1 Comments

Renu

23-Jan-2023 03:38 PM

👍👍🌺

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